सभी के सामने दलदल को, जो दलदल बताता है
जमाना आजकल उसको, बड़ा पागल बताता है
किसी की याद ने काफ़ी , रुलाया है तुम्हें शायद
तुम्हारी आँख का फैला , हुआ काजल बताता है
एवं
नहीं है चीज़ रखने की ,जो बच्चे साथ रखते हैं
खिलौनो के दिनो मे बम , तमन्चे साथ रखते हैं
कहीं बचपन न खो जाए हमारा इसलिए हम तो
अभी तक जेब मे दो चार ' कन्चे ' साथ रखते हैं
डॉ। उदय ' मणि '
नव वर्ष २०२४
1 year ago
8 comments:
बहु ख़ूब...
khusi men bhi kahin ik dard ki halaki jhalak to hai,
bhara hai ghav per under abhi baki kasak to hai;
kisi ki yaad ka ab aur pukhta sakshya kya hoga,
nahayee aansuon men roj yah bhigi palak to hai.
Chandrabhan Bharwaj
बहुत खूब कहा आपने.. पसन्द आये आपके मुक्तक..
उम्मीद ही बाइसे तकलीफ़ होती है
यकीं जिसका हो वह अक्सर नहीं आता
bahut umda likha hai aur sahi baat bhi hai........
bahut hi badhiya
eKavita par aapko discover kiya.. aapka style waqai bahut cool hai !
keep it up !
-Archana
अतिसुन्दर प्रस्तुति...बधाई !!
उदयजी क्या कह गए आप. बहुत ही ज्यादा बढ़िया. 'कंचे साथ रखते हैं' भाई वाह. उस दिन यही पंक्तियाँ पढ़कर आपको फ़ोन किया था और आज दुबारा ये मुक्तक सामने आ गया.
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