
उठा कर हाथ हर कोई यही फरियाद करता है
दुबारा भेज उसको जो चमन आबाद करता है
ज़माने के लिए तुमने लगा दी जान की बाजी
तभी तो आज तक तुमको जमाना याद करता है ....
हमेशा वक्त को अपने इशारों पर नचाया था
लगा आवाज शब्दों से ज़माने को जगाया था
हवाओं-आँधियों ,तूफ़ान में चलते रहे हरदम
न जाने आपको चलना भला किसने सिखाया था ....
यहाँ पे मौसमों का आज वो उत्पात थोडी है
यहाँ पे आजकल उतनी कठिन बरसात थोडी है
किसी का दम नहीं है जो मुकाबिल चाल को रक्खे
'समय' के नाम से जीना हँसी की बात थोडी है ....
बगावत जब जरूरी हो ,नहीं डरना बगावत से
समय का सामना करना बहुत पुरजोर ताकत से
हमेशा फर्ज को तुमने उसूलों सा निभाया था
तभी तो वक्त लेता है तुम्हारा नाम इज्जत से.....
डॉ उदय 'मणि'कौशिक
2 comments:
Bahut Badhiya... Abhi kahne ko bahut kuch baaki hai.
bahut gahari baat hai rachana me sundar. badhai ho.
Post a Comment