हमारा फन अभी तक भी, पुराना जानते हैं हम
जमाने दोस्ती करके , निभाना जानते हैं हम
किसी भूचाल से इनमे , दरारें पड़ नहीं सकती
अभी तक इस तरह के घर, बनाना जानते हैं हम
उठा पर्वत उठाये जा , हमें क्या फर्क पड़ता है
इशारों से पहाडों को , गिराना जानते हैं हम
हमारी बस्तियों में तुम , अँधेरा कर न पाओगे
मशालें खून से अपने जलाना , जानते हैं हम
बरसती आग से हमको , जरा भी डर नहीं लगता
कड़कती धूप में बोझा , उठाना जानते हैं हम
हवाएं तेज हैं तो क्या , हमारा क्या बिगाडेंगी
पतंगें आँधियों में भी , उडाना जानते हैं हम
जरूरत ही नहीं पड़ती , हमें मन्दिर में जाने की
अगर मरते परिंदे को , बचाना जानते हैं हम ........
डॉ उदय 'मणि'कौशिक
आपकी सक्रिय प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में ...
डॉ उदय 'मणि'कौशिक
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नव वर्ष २०२४
1 year ago
7 comments:
sundar gajal ko padhane ke liye aabhar.
धन्यवाद रश्मि जी ,
प्रोत्साहन के लिए हृदय से अभारी हूँ
स्नेह बनाए रखें ,
मैं भी आपके ब्लॉग पर आपकी रचनाएँ नियमित देख रहा हूँ
डॉ. उदय 'मणि'कौशिक
उदय जी,
बेहतरीन गज़ल है
भले ही सर्द हो जायें दुआयें भी सलामी भी
गज़ल लिख कर नई आतिश लगाना जानते हैं हम
sarwa pratham aapka bahut bahut abhi wadan........sach main aapke andar sarawati ka was hai......aapki saari rachnaye ek se badh kar ek hai.......
"khubsurat gajal"
aapke iss फन main dumm hai.......
mukesh sinha
dr sahab aap likte tho accha hai magar mei aapke lekhan ki taarif karne kee saath aapse ek help caahtee huu ki jab mei kisi article par aapki help chaaun please help me
नमस्कार,
पहला शेर कुछ समझ मे नही आया... उसके बाद सब लाजवाब हैं :)
संवेदना की सुंदर अभिव्यक्ति !
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